आलस
आलस
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जब तक युवा मक्कारी आलस के पग चूमेगा
सच कहता हूँ तब तक भारत औरों के आगे झुकेगा
ख़ून नहींं खौला जिसका व्यर्थ जवाँ तरूणाई है
टकराकर, पर्वत चूर नहीं तो ये बुझी हुई अॅँगड़ाई है
जिसके रगोंं में सुप्त शोणित उसका कोई अस्तित्व नहीं
वो ज़िन्दा लाशें है भूमि पर उनमे कोई जीव नहीं
जागो, उठो मंज़िल को भागो ये युग पुरुष का नारा है
हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान पर जिसने तन मन वारा है
उनके आदर्शों पर चलकर, आआे, देशप्रेम रस पान करो
अपने भुजदण्डोंं पर रख जग से ऊँचा हिन्दुस्तान करो !!
"अतुल बालाघाटी "