तुझे खरोच लूँ
तुझे खरोच लूँ
कभी कभी सोचता हूँ
तेरी दीवारों को खरोच लूँ
तू भागे मुझसे हाथ छुड़ा के
तुझे अपने आगोश में दबोच लूँ,
तेरी मिन्नतें हो हज़ार रूहानी
मैं तेरी रूह को नोच लूँ।
कभी कभी सोचता हूँ
तेरी दीवारों को खरोच लूँ।
तू तड़पती रहे पर दूर न हो
मैं तुझे इस तरह की एक सोच दूँ
तेरे जिस्म में मैं समा जाऊं
तेरे लबों को इतना मैं रोष दूँ।
कभी कभी सोचता हूँ
तेरी दीवारों को खरोच लूँ।
तू हार जाये अपनी सांस हर
इस तरह कुछ तुझे आक्रोश दूँ,
फिट तू दूर होती पास आ जाये
तुझे मैं फिर इतना दोष दूँ।
कभी कभी सोचता हूँ
तेरी दीवारों को खरोच लूँ
लिपट कर ढूंढ ले खुद को तू
ऐसे पल्को में पुतली सा दबोच लूँ।
और जब तुझे दिखाई दे मेरी नज़र
फिर तुझे एक नयी मैं सोच दूँ,
कभी कभी सोचता हूँ
तेरी दीवारों को खरोच लूँ।