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चाँदनी रात

चाँदनी रात

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ये जो बात है बड़ी ही ख़ास है,

ख़ास है क्योंकि ये बात है मेरी पूर्णिमा की चाँदनी रात की।

मुझे तो अभी भी यकीन नहीं होता,

लगता है कि बात है ये एक बेहद ख़ूबसूरत ख्वाब की,

गौर से सुनना क्योंकि ये बात ही नहीं है,

है एक राज़ भी।

आसमा में चारो तरफ सितारों से भरी चाँद की चाँदनी थी,

और ज़मीन पे हरी हरी भरी घास थी।

अब बताता हूँ कि ये बात क्यों एक राज़ थी,

क्योंकि वो नीलम हसीं परी अपने घर से काफ़ी दूर मेरे पास थी,

पहले ही बता दूँ कि यूँ छुप छुप कर मिलने की मेरी नहीं उनकी करामात थी।

ठंडी हवा में लिपटी सरगोशियाँ, सरगोशियों में न जाने कैसी ये आवाज़ थी।

ये दिल पहले भी कभी धड़का था, ये बात तो सिर्फ एक अफवाह थी।

झील सी नीली आँखे उस मासूम नीलम परी की क्यों नीचे झुकी थी?

पूछने पे पता चला कि उन्हें अपनी माँ की हिदायतो की थोड़ी सी परवाह थी,

परवाह थी क्योंकि वो आधी रात थी, आधी रात थी और वो मेरे पास थी।

कसम मोहब्बत-ए-परवरदिगार की उनकी पलके उठी तो कमाल हो गया,

मुझ बावले को पल दो पल में खुदा के नूर का  दीदार हो गया।

कहने को अभी तलक मैं शराब से महरूम था,

पर ऐ हसी तेरा ये नूर देख के मैं पहली दफा नशे में चूर चूर था।

फलक चाँदनी में डूबा चाँद गुस्से से क्रूर था, आखिर उसका भी आज टूटा गुरुर था।

मुझे इल्म है कि तेरे लिए आसा नहीं,

यूँ इस कदर रात गए घर से काफी दूर मुझसे तन्हा मिलना।

तभी तो कहता हूँ की तेरी पाक मोहब्बत पे मुझको शक नहीं,

क्योंकि मुझ नाचीज़ को ये सोचने का भी हक़ नहीं।

आँखों ही आँखों में मैंने सब पढ़ लिया,

तुझे मुझसे बेपनाह मुहब्बत है इस बात को ताउम्र के लिए ज़हन में रख लिया।

तेरी इस पाक मुहब्बत के आगे मेरी मोहब्बत की क्या औकात,

पर तेरी मोहब्बत से तिनका भर कम न इसका पूरा है विशवास।

 

 


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