मिलन की पहली बेला
मिलन की पहली बेला
धूप थी तेज पर कहाँ लगी
देर तो हुई पर खड़ी रही
दिल घड़ी की टिक-टिक सा
धड़क-धड़क कर बता रहा
आज कोई मिलने को आ रहा।
थी यूँ तो पहली मुलाक़ात
भीतर ही भीतर पर कितने पहर
बीते संग-संग आगोश में
साँसों की लय पर गुनगुना के
सपनों की तरह आँखों में सजा के
जागे हुए सोयी, और सोते में जागी-सी।
इश्क़ का पहला सोपान था
उठता भीतर ही भीतर तूफ़ान था
बिन मिले समा गया कोई रूह-सा
बिन छुए महका दिया कहकशा
ऐसा सुरूर छाया था गात पर
लहराए लता जो हलकी-सी वात पर।
आई है आखिर अब वो घड़ी
रहे उसकी राह पर नज़र गड़ी
आये! आये! अब आ भी जाए
कैसे, कितना कोई दिल को समझाए
अब तो सजन मिलने को आये
मधुर मिलन की पहली बेला
बैठी हूँ पथ में पलके बिछाये।