उन वादियों में मिलना
उन वादियों में मिलना
ले चलना मुझे उन वादियों में
जहां धीरे धीरे मैं अक्सर
तुमसे मिलने आया करता था
तुम उस उपवन में मिलना
जहां सरसराहट करती हवा
उन फूलों से मिला करती थी
तुम नदी के साहिल पर मिलना
जहां कल कल करती नदी
उसके अधरों को छूती थी
तुम कोयल सी बतियाना
मैं मोर सा मग्न होकर
अपनी धुन में ही नाचूंगा
तुम उस पथ पर मिलना
जहां हाथ में हाथ डाले
हम तुम सपने बुना करते थे
तुम बारिश में भी चले आना
उस बहते झरने के नीचे
मैं छतरी लेकर आऊंगा
पक्षियों की चहचहाट में
घर के आंगन को छोड़कर
तुम मेरी तरफ चले आना
मैं अपनी शुध बुध खोकर
घने पेड़ की छांव तले
तुम्हें कोई नई राग सुनाऊंगा
तुम सांझ ढले सज़ धज के
कुछ उम्मीदें संजोए
उन वादियों में मिलना
जहां हम तुम अक्सर
आंखों में आंख मिलाकर
कुछ ख़्वाब जिया करते थे...