इक ख़त भगवान् को
इक ख़त भगवान् को
मेरे प्यारे दोस्त भगवान्
आँखों में कैसी यह नमी आ गयी
यह वक़्त रुक गया या ज़मीन थम गयी
मेरे मौला मुझे तुझपे शक तो नहीं
शायद शोर ज्यादा है तो तुझे सुनता नहीं
वक़्त मिले तो यह ख़त पढना
ज़रा खुल के बता तेरा क्या है कहना ??
दस्तूर तेरे हम समझते नहीं, या हर दर्द को अब यूँ है सहना
रहना तनहा मुझे आता था, मैं हर जख्म को सह जाता था
फिर क्यूँ तुने मुझे कराया ज़िन्दगी से प्यार,
जब मेरा खुश रहना ही न भाता था ??
मुझे पता है तू बहुत दयालु है, इक न इक दिन तू जागेगा जरुर
पर जो मेहनत करके दर्द पाते हैं, आखिर उनका क्या है कसूर ??
न चाह किसी से बदले में कुछ, न ही ख्वाहिश किसी से कोई थी की
तुने ही बनाया था दिल, उसमें भरी चाहत,
तो क्यूँ किसी ने इसे तोड़ने की कोशिश की थी ??
जवाब तू शायद न दे, क्यूंकि दुनिया पे हुकूमत तेरी है
और इस दुनिया को जरुरत तेरी है ...
पर मैंने तुझे अपना दोस्त माना है
रूठा है यह दोस्त, तुझे बुरा माना है
आकर या तो माना ले इसे
वरना तुझसे कभी बात न करेगा, यह इसने आज ठाना है||
तेरा रूठा दोस्त