मन पाखी
मन पाखी
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गीत
मन पाखी
मन तुम तो पाखी बन कर
उड़ जाते हो दूर गगन तक
पल भर में ही हो आते हो
सात समुन्दर पार तक।
पल में यहाँ और पल में वहाँ
हर क्षण जगह बदलते हो
क्या कोई तुम्हारा एक ठिकाना
बना नहीं है अब तक।
हर पल तुम तो विचरा करते
चैन न लेने देते हो
जैसे भटकता कोई राही
मिले न मंजिल जब तक।
सोचूँ तुमको बंधन में बाँधू
पर कैसे और कहाँ तक
तुम ऐसे परवाज़ हो जिसको
बाँध सका ना कोई अब तक।
पूनम श्रीवास्तव