नाकामयाबी
नाकामयाबी
इस दफ़ा न किताबें बदल पाएँगी और न ही बदल सकेगी उनकी सिलवटें।
इस दफ़ा उन सिलवटों को मोड़कर ही काम चलाना पड़ेगा और उन घिसे कागज़ो में जगह ढूँढ फिर से घुमानी पड़ेगी कलम।
मिटाना चाहूँ भी उन्हें तो लकीरें रह जाती है और उनकी झुर्रियों में जो मेरी नाकामयाबी की चीखें घर कर चुकी हैं अब निकाले नहीं निकलती।
किताब के पन्ने उन दीवारों से हो चले हैं जिनकें सीनों की हताश सीलन मेरे पैरों को थाँ नहीं देते और लांघ नहीं पाता अपनी नाकामयाबी।
इस दफ़ा न किताबें बदल पाएँगी और न ही बदल सकेगी उनकी सिलवटें।