आषाढ़
आषाढ़
जल से रहित था उसका पात्र
सबकी आँखें प्रतीक्षा की प्रत्यंचा पर चढ़ी
उदास ही रहीं
चाँद बादलों की चिलमन में छुपा
निष्ठुर प्रियतम था
चंद्रिकाएं उतारू थीं
ऐयारी पर
धरती बाम पर इंतज़ार करती
विरहणी थी
बादलों के जवाबी ख़त नदारद थे
सूरज की आंखमिचौली से
दिन ठिठका हुआ हिरण था
नदियाँ झीलें पोखर बावड़ी
भेज रहीं थीं,शिकायती चिट्ठियाँ
पर छली आषाढ़ तरसाता ही रहा
छा छा के उम्मीदें बंधा बंधा के
अपना निकम्मा कार्यकाल पूरा कर
निकल गया,बिना बरसे ही
सावन को सौंप अपनी पेंडिंग फ़ाइल