सफ़र
सफ़र
कभी सपने ..कभी हकीकत ..कुछ ख्यालों में
यूँ फंसते ही गये जीवन के मकड़जालों में,
जवाब मौत है आखिरी,सब जानते है मगर
जिंदगी उलझी ही फिर भी क्यूँ सवालों में,
रईसों ने फेंकी आधी,गरीबो ने पायी आधी
किस्मत रोटी की दिखी चंद ही निवालों में,
घुटता है दम उनका इत्र की शीशी में
जिनकी फितरत है रहना,सिर्फ नालों में,
आती है शर्म खुद से,दो रुपये उधार लेने पर
लोग डकार नही लेते ,नाम आने पर घोटालों में!
एहसास मुहब्बत का उन्हें भी होगा इक दिन
तब बिखरेगा पानी फूट के आँख के छालों में...