आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई
आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई
रूठकर इस तरह से क्या जाता है कोई,
आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई,
हम समुंदर से मिले और भँवर हो गये हैं,
दूर तलक जो भटके हैं मृग हो गये हैं,
कदमों की इन चालों ने उलझाया बहुत,
पास आकर भी दूरियों को बढ़ाया बहुत,
मेरे मन के स्वप्नों को सजाता है कोई,
आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई।
लोग कहते हैं भटककर कहीं गुम न जाना,
तजुर्बों के लिये इस जिंदगी को न मिटाना,
हम खुद ही घर तोड़ने के कारण हुए हैं,
छाँव को छोड़ धूप के हम चारण हुए हैं,
विरह की अग्नि को मन में लगाता है कोई,
आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई।
उधर दूर से ये देखो कौन आ रहा है,
अग्नि से चमन को क्यों झुलसा रहा है,
इधर भी तो चाहत जवाँ हो गई है,
मिलन की लगता है यही शुभ घड़ी है,
अग्नि में घृत को क्यों गिराता है कोई,
आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई।
प्रश्न हम से जिंदगी में क्यों हजारों हुए,
बिन बरसातों के हम सावन भादों हुए,
टूटकर इस तरह बिखर भी जाता है कौन,
भटककर मंजिलों को भी पाता है कौन,
इन रास्तों से हमें भी बुलाता है कोई,
आ जाओ कि बहुत याद आता है कोई।