जूनून
जूनून
बिखरी-बिखरी थी खुशियाँ जब उनकी ज़रुरत न थी
समेट ले गई फिज़ाए जब उनकी ज़रुरत थी
चाहतो का बना बिछौना हम उस पर लेट गए
जब नींद जुटा पाने की हमारी हैसियत न थी
खोद रहे हैं संतोष का कुआँ
अब जब धरती की गोद मे पानी की किल्लत थी
आवाज़ लगा रही हैं बहारे अब जब सुन पाने की कानो की शक्सियतन थी
झकझोर के रख दिया एक जूनून ने जब
कुछ कर गुज़रने की हमारी है हिम्मत न थी...