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खुशियों की दस्तक

खुशियों की दस्तक

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तलाक शब्द के खौफ ज़दा डूबते

अश्कों को मिला एक स्वर्णिम

सुबह का आगाज़..! 


अब सिसकियाँ मासूम के पलकों

की दहलीज़ न छू पाएगी 

हर पल सरताज के तीन लफ्ज़ों की

दहशत से उभरती,

झूमेगी अबलाएँ खुशियों के

आसमान को चूमती..!


आज़ाद मुक्त अपने स्वाभिमान की

परवाज़ संग..

सदियों से पड़े पत्थर को पिघला कर

एक नये आयाम ने दस्तक दी सुर्ख

रुख़सार पर हँसी की..!


महज़ तीन लफ्ज़ों की मोहताज थी

लाचार जूती के नीचे दबी आज मुखर

है अपने वजूद को तलाशती..! 


करवट ली तकदीर ने रौशन सितारे

भर गए

अब ना कोई दामन होगा रहम की

झोली फैलाते खाविंद की दहलीज़ पे।।



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