कुर्सीः एक नेता की व्यथा कथा
कुर्सीः एक नेता की व्यथा कथा
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कुछ मिले न मिले, बस मिल जाये कुर्सी।
बहार को आना है आये, जाना है जाये,
आकर कभी न जाये कुर्सी।।
भले ही मेरा यार, कर दे मुझसे बेवफाई।
सदा बफा की रस्म, निभाती जाये कुर्सी।
अफवाहें फैलाना, झूठ बोलना या पड़े दंगे भड़काना
कोई भी हो तिकड़म, बस बच जाये कुर्सी।।
खटमल कह लो, जोंक कह लो या कह लो पिस्सू।
कुछ भी कह लो पर अब न छोड़ी जाय कुर्सी।।
कुर्सी की खातिर ही मैंने जन्म लिया है।
ख्वाहिश है यही, अर्थी भी बन जाये कुर्सी।।
अब तो चारो ओर कुर्सी ही नजर आती है।
या तो दिल धड़कना छोड़ दें, या धड़कन बन जाये कुर्सी।।