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तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?

तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?

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हां, मैं जानता हूं कि अब तुम मेरी नहीं रही,

लेकिन अगर मैं अपने दोस्तों के आगे,

तुम्हें अपनी जान कह कर पुकारूंं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?


बिगड़ती थी तुम मुझपर,

जब तुम्हारे अलावा कोई मेरे बालों को हाथ लगाता

या उन्हें संवारने की कोशिश करता,

अब जो तुम चली गई हो,

तो मैं अपने ये बाल ख़ुद ही सवारूं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?


सिर्फ एक तुम्हें हक़ दिया था

मेरी गलतियां बताने का,

और उन्हें सुधारने का,

अब जो तुम नहीं हो,

तो मैं अपनी ये गलतियां ख़ुद ही सुधारूंं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?


तुम्हारी कुछ चीज़ें अब भी

मेरी अलमारी में सजी पड़ी है,

अब तुम्हें ना सही

तुम्हारी उन चीज़ों को निहारूं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?


सर्द रातों में अपना कंबल छोड़कर

मेरे कंबल में मुझसे लिपटकर

सो जाया करती थी तुम,

अब तुम्हारे साथ ना सही,

तुम्हारी यादों के साथ कुछ रात गुज़ारूंं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?


मेरा शराब पीना तुम्हें कतई पसंद नहीं था

ये जानता हूं मैं,

लेकिन अब जो तुम चली गई हो,

तो कुछ घूंट शराब के

अपने हलक से नीचे उतारूंं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं ?


दिन में हज़ार दफा मरता हूं

ये सोचकर कि अब मेरी बाहों की जगह

रक़ीब की बाहों में बिताती हो तुम हर रात,

इस दर्द के सिलसिले को यहीं ख़त्म करने के लिए

मैं खुद को एक ही बार में मारूंं,

तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं...?


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