लिख लेता हूँ मैं
लिख लेता हूँ मैं
मिले जो कोई गम, लिख लेता हूँ मैं।
कभी ज़्यादा कभी कम लिख लेता हूँ मैं।
टूटता है दिल लोग आँसू बहाते हैं...
उठाकर कागज़ कलम लिख लेता हूँ मैं।
मिले जो ढेर सारा प्यार लिख लेता हूँ मैं।
हुआ खुशियों में शुमार लिख लेता हूँ मैं।
तारीफ़ करनी हो तो जुबां साथ नहीं देती...
बस करके सोच-विचार लिख लेता हूँ मैं।
गुस्सा कभी जो आये लिख लेता हूँ मैं।
मन ज़रा घबराये लिख लेता हूँ मैं।
तन्हा बैठता हूँ अक्सर सड़क के किनारे...
कोई हाथ आगे बढ़ाये लिख लेता हूँ मैं।
यादों का चराग जो जलाया लिख लेता हूँ मैं।
कोई रूठा गर मनाया लिख लेता हूँ मैं।
मुझे सुनकर सहम जाते हैं लोग अक्सर...
कोई सुनकर मुस्कुराया लिख लेता हूँ मैं।
जो दिल से निकली दुआ लिख लेता हूँ मैं।
जीने की मिली वजह लिख लेता हूँ मैं।
तंग दुनियां में दम बहूँत घुटता है...
जो साँसों को मिली हवा लिख लेता हूँ मैं।
जो रूह को मिले आराम लिख लेता हूँ मैं।
चंचल-सी सुबह खामोश-सी शाम लिख लेता हूँ मैं।
वो लड़ते हैं मैं हिंदू मैं मुस्लमाँ...
कभी अल्लाह कभी राम लिख लेता हूँ मैं।
हुई जो परवाह लिख लेता हूँ मैं।
महकी कभी हवा लिख लेता हूँ मैं।
ना वैद्य हूँ ना हकीम जानो...
बस दर्द-ए-दिल की दवा लिख लेता हूँ मैं।
मन में हो कोई बात लिख लेता हूँ मैं...
दिन हो या रात लिख लेता हूँ मैं...
हारकर टूटने का रिवाज़ मैं नही मानता,
जो मुझको मिली मात लिख लेता हूँ मैं।