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प्रतिज्ञा

प्रतिज्ञा

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सहन किया है मैंने नित दिन अत्याचार

पीड़ा, प्रताड़ना और दुराचार,

मूक नही, बधिर नही, फिर भी क्यूँ हूँ लाचार?

नारी हूँ, क्या यही है मेरा अपराध?


क्यूँ रहू मैं सदैव पुरूष की छाँव तले?

क्यूँ मेरी प्रगति से यह समाज जले?

क्यूँ रौंदी जाती हूँ मैं सदा बंदिशों तले?

नारी हूँ, क्या यही है मेरा अपराध?


ले चुकी हूँ मैं निर्णय, अब रोके न रूकूँगी,

बहुत सह चुकी हूँ, अब प्रतिशोध मैं लूँगी,

हर विरोध के विरूद्ध अब विद्रोह मैं करूँगी,

नारी हूँ, नारी होना नही है कोई अपराध।


मेरी गति को बंधन न बाँध पाए कोई,

शक्तिस्वरूपिणी हूँ, मुझे न हरा पाए कोई,

मेरी काया को हैवान न मलिन कर पाए कोई,

नारी हूँ, नारी होना नही है कोई अपराध।







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