सुःख-दुःख तुमसे थे
सुःख-दुःख तुमसे थे
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तुम मिलती थी रोज़
और मैं लिखता था
कुछ-न-कुछ
तुम पर
मेरी उम्र के
वे सर्वाधिक सुखद हिस्से थे
तुम अनुपस्थित रही
लंबे अरसे तक
दिन, हफ्ते, महीने, बरस......
और मैं लिखता रहा
कुछ-न-कुछ
तुम पर
कुछ ज़्यादा ही
मेरी ज़िंदगी की वे
सर्वाधिक अँधेरी कतरनें रहीं
तुम थी, तब कविता थी
तुम नहीं थी, तब कविता थी
सुःख था, तब कविता थी
दुःख था, तब कविता थी
सुःख-दुःख जो तुमसे थे
कविता
जो तुम पर थी।