भुला दें
भुला दें
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कोई कैसे भूल पाए
जो दर्द हैं उठाये
जब सताती ये यादें
भूल जाते सारे वादे
ख़ुश रहने की
जो क़सम है खाई
तोड़ जाती उन्हें
अपनों की जुदाई !
चल ए दिल
कुछ ख़्वाब नये बुनते हैं
कुछ खेल खेलते हैं
कुछ तू भुला
कुछ हम भूलते हैं !
बादलों में चाँद की
लुका छिपी देखते हैं,
तारों को गिनते हैं,
गिनती भूल जाते हैं !
हवाओं की सनसनाहट को
लय बद्ध करके सुनते हैं,
डर जाएँ तो
एक-दूसरे को थाम लेते हैं !
चल ए दिल !
हर ज़ख्म, हर सितम
भुला देते हैं
ग़र न भूल पाएँ
ख़ुद को ही भुला देते हैं
कोई कैसे भूल पाए
जो दर्द है उठाये !