वस्त्र
वस्त्र
फूलों के वस्त्र,सुंदर थे
बौराये मन लिए लोग
ऊपर से झाँक रहे थे
खुशबुओं को साँस में संजोये
फूल हँस रहे थे,पत्तियाँ झूम रही थीं
नीले फूलों ने सफ़ेद फूलों से कहा
इन्हें पता चला क्या..
हमारी काया हमारी आत्मा
हमारी संवेदनशीलता हमारी चेतना
सब खिल गई है
सब्ज़ रंग ने ज़िन्दगी,पीले ने एहतराम दिया
नारंगी ने पराग तो गुलाबी ने
मोहब्बत निचोड़ी है हमारे अंदर
इन्हें क्या पता हमारा मन ही नही
चेतना भी खिल गई है
हमारे वस्त्र तैयार करती है क़ुदरत
एक अदृश्य सुई से
महीन पच्चीकारी से सजाने को
तोड़ती मरोड़ती काटती है
सत्य की दो टूक कैंची से
तभी तो ये वस्त्र हमारे साथ ही रहते हैं
जन्मने से सूखने तक
और इनके वस्त्र?
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