माँ
माँ
कोई भी हो देशकाल और कुछ भी हो बदलाव।
बदला नहीं, नहीं बदलेगा माँ के मन का भाव॥
उसकी गरिमा और आत्मीयता का न कोई सानी ।
हुए देवता भी माँ के आगे तो पानी-पानी ॥
बच्चा हो या युवा, एक सी करती है परवाह ।
चोट लगे बच्चे को माँ के मुख से निकले आह ॥
बच्चों की रक्षा में न्यौछावर कर देती प्राण ।
दूर बसा हो बच्चा चाहे, संकट लेती घ्राण ॥
हो करोड़पति पिता किन्तु बच्चे नहीं सकता पाल ।
कहते हैं पीसनहारी माँ चमका देती भाल ॥
माँ बच्चे को सही-गलत की देती है पहचान ।
बड़े धैर्य से सुनती उसकी बात लगा कर कान ॥
माँ होती है गुरु और माँ ही होती है मित्र।
भरा अनेक रंगों से होता है माता का चित्र ॥
माँ की महिमा को शास्त्रों ने भूरि-भूरि बखाना ।
गाय, नदी और धरती माँ को माँ जैसा ही माना ॥
काम बढ़ाता माताओं का स्वाभिमान औ'मान।
रहती व्यस्त, छिड़कती है'सुषमा'बच्चों पर जान॥