बचपन
बचपन
पचपन की उमर में बचपन की बातें,
तो भी कैसे भूलूँ मैं वो दिन और रातें,
वो मां का दुलार, पिता की मार,
भाई - बहन की मीठी तकरार,
वो बुढ़िया के बाल और कपड़े की गुड़िया,
वो किताब में छुपी चूरन की पुड़िया
वो सर्कस का भालू, दादी - नानी की कहानियाँ ,
वो छुपते - छुपाते जाना सहेली की गलियां
वो झालर वाली फ्रॉक और रिबन वाली चोटियां,
वो घर - घर खेलना भरी दुपहरी,
गर्मी के दिनों में छत पर सोना,
बरसात आये तो गद्दे का ओढ़ लेना,
वो पत्तलों की दावत और अष्टमी का खाना,
मोहल्ले के जीजा से नेग के लिये अड़ जाना।
गुड़िया की शादी में गुड्डे का बारात लेकर आना,
विदाई के समय गुड़िया देने से नट जाना
वो लंबा सा दालान,
चबूतरे और चौबारे,
हुक्के की गुड़गुड़ाहट,
पड़ोसियो की हुंकारें ।।
वो बिना फिक्र के खेलना,
खाना और घूमना |
स्वछन्द पता नहीं था मुझको इतना क्यों देता था आनंद ?
बचपन की यादो के मोती ढेरो मैंने जोड़े थे,
कुछ अब तक पास रखें है मैंने,
कुछ हाथों से फिसले थे
मेरी आँखों में बस बसा हुआ था एक सपना,
जाने कब आएगा फिर वो मेरा बचपना
खोज रही थी जिसको कब से,
वह फिर से आया हैं |
अपने बचपन को मैंने
अर्जुन में फिर पाया है।।