कुछ अनसुलझे सवाल?
कुछ अनसुलझे सवाल?
ज़िंदगी दो पल की
कल का कुछ ठिकाना नहीं
आज सवेरा है
कल के अंधेरे का गुमान नहीं
रंग-बिरंगी इसकी दुनिया है
कहीं धूप, कहीं छाव
इसकी दो कठपुतलियाँ है
बारी–बारी अपना खेल दिखाती है
सुख–दुख अपने संग
लेकर ये आती है
जब साथ हो दोनों का
तब इंद्रधनुष ये बनाती है
जीवन के सात रूपों को
एक साथ ये दर्शाती है
कभी गम का काला साया
तो कभी खुशी का फ़रमान ये लाती है
इसको समझना इतना आसान नहीं
कठपुतली का नाच ये सब की बात नहीं
रंग रंगीली इस दुनिया के
खेल बड़े निराले हैं
इसे समझने जो बैठे
वो खुद कठपुतली का नाच दिखलाते हैं
ज़िंदगी को समझना
तारों को गिनने से कम नहीं
इसके अंदर उलझते जाना
आसमान को छूने से कम नहीं
इसको समझ पाना
इंसान के बस की बात नहीं
ना जाने क्यो?
ज़िंदगी इतनी आसान नहीं?