कब आओगे
कब आओगे
एक नन्ही-सी गुड़िया थी, एक नन्हा सा गुड्डा था।
रुनझुन पायल छनकाती ये, वो हौले साज सजाता था।
इनके खेल की अजब कहानी, बनती ये परियों की रानी।
बोने आते खूब शोर मचाते, ये उनको मार भागता था।
ना जात पता था नन्ही को, ना पात पता था नन्हे को।
जब मिलते भर मन मिलते, कि जग सारा हँस पड़ता था।
फिर वही हुआ जो होता है, फिर दोनों को फटकार लगी।
तब जाके ये पता चला, कि लड़की थी वो लड़का था।
पढ़ने को जब घर छोड़ चला, उसने पूछा कब आओगे।
आँखों से कहा था नन्हे ने, जब भी तुम दिल से चाहोगे।
बीत गए है अब बरसों, है दोनों के अपने परिवार।
फिर भी नन्हे को याद रहा कि लौट के कब तुम आओगे।
लौट के कब तुम आओगे।