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अमर अनंत आजातशत्रु अटल अटल

अमर अनंत आजातशत्रु अटल अटल

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इक दुःखद शाम...

अमर 'अटल युग' का अंत,

अटल जी की इक कविता के संग..


"क्या खोया क्या पाया"...

ओर कुछ ना कह कर भी

इक-दूसरे को देख कर

अश्रु पूरित आँखे नम....


इक दुःखद शाम...

जन सैलाब के साथ

इक लॉन्ग ड्राइव..

ओर 'अटल' अमर लफ्ज

.

"मैं जी भर जिया,

मैं मन से मरूँ,

लौटकर आऊँगा,

कूच से क्यों डरूँ ?"


जीवन के ब्रेक को थामे

अजर अमर 'अटल'जी

कुछ इस तरह कि

तुम्हें थाम लूँगा हर मोड़ मैं....


कुछ ना कह कर भी

स्मृतियों के वन को देख

आपको आभासित

कर लूँगा मैं ...


इक दुःखद सी शाम...

कविता को सुनने की जिद..

मेज पर बिखरी हो,

अटलजी की किताबें...

मैंने उन्हीं कविताओं से कुछ पढ़ा


"मौत से ठन गई !

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यूँ लगा जिंदगी से बड़ी हो गई"


जैसे ये सिर्फ अपने लिये लिखे हो..

जब इन्हें मैं अपने जहन में दोहराता हूँ

तो हर शाम गमगीन हो जाता है...


इन्ही आखिरी भावभीनी श्रद्धांजलि से....

अनतं 'अटल' स्मृति खत,लफ्ज

एकटक जैसे मुझे छूते रहे,

कविताओं में लिखे तुम्हारे लफ्ज़,

जैसे मुझे पुकारते रहे,


मैं तुम्हें पढ़ लूँ,जी लूँ उन लम्हों को,

जो तुमने हमें इन रचनाओं में दिये हैं ..

पर ना जाने क्यों आज

मैं नहीं पढ़ पा रहा....


इस इन्तजार में....

कि इक दिन तुम आओगे..

और हम तुम्हें जी लेगें

अमर अनंत आजातशत्रु

अटल अटल अटल !!


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