मुलाकात की रात
मुलाकात की रात
कुछ इस तरह उनसे मुलाकात हुई !
पहले बिजली कड़की, फिर बरसात हुई।
भीगी साड़ी में वह महक सी उठी,
दिल फिसला, फिर नजदीकियाँ बढ़ी !
पानी पानी हो गया उसके आँगन में,
शर्म कैसी ? किससे ? कौन यहाँ था
अब होश में।
लिपटी रहना यूँ ही तुम साँसों से मेरी,
निकल ना जाए रात,
कर दे खत्म होठों की दूरी !
क़यामत सी, ये जो कातिलाना रात थी,
चमकती बिजलियाँ,
सिर्फ इकलौती गवाह थी !