वो बचपन के दिन
वो बचपन के दिन
रंग, जात और दौलत की,
तब बातें ही न करते थे।
प्यार के बदले प्यार यही,
सौगातें बाँटा करते थे।
जो प्यार से बाहें फैला दे,
उसको ही गले लगाते थे।
सारे रिश्ते निश्चलता की,
परिधि में तौले जाते थे।
न हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
न राजा न रंक कोई।
वो दोस्त मेरा कितना जिगरी,
हम शान से ये बतलाते थे।
दोस्त नही मिलते थे जिस दिन,
जैसे कुछ खो जाता था।
एक अगर बीमार पड़े तो,
दूजा भी स्कूल न जाता था।
मस्ती वाला हर पल था,
चिंता को दूर भगाते थे।
कहाँ गए वो बचपन के दिन,
जब हम भी हँसते गाते थे।
बड़े हुए और समझ बढ़ी,
ये भ्रम क्यों पाल लिया हमने?
इस समझ से नासमझी अच्छी थी,
जब भोले हम कहलाते थे।