आहुति
आहुति
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उम्र भर
छोटी-छोटी
खुशियों की
आहुति देकर
भागता रहा मैं
भौतिक सुखों के पीछे
इस कदर कि
पता ही नहीं चला कब
उम्र की शाम ढल गयी
और मैं बिना जीवन जिए ही
कब्र में पहुँच गया....