मैं आ रहा हूँ...
मैं आ रहा हूँ...
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कहते हुए जब तुम
पूरे आवेग से मेरे भीतर आते हो
नाजाने कितने? कितने ब्रम्हांड
मेरे अंदर खुलने लगते हैं
बजने लगता है शंख मेरे भीतर
महकने लगती हूँ किसी चंदन वन-सी मैं
अपनी ही देह के भीतर से
ऊपर उठने लगती हूँ
जैसे मुक्त हर बंधन से
हल्की होती प्रवेश करने लगती हूँ अनंत में...