एक रास्ता, दो मुसाफ़िर
एक रास्ता, दो मुसाफ़िर
एक रास्ता
दो मुसाफ़िर
दोनों एक साथ चले
दोनों खूब ख़ुश थे
एक दूसरे से ढेर सारी बातें करते थे
हर तरह की बातें
कभी पहला दूसरे को पागल कहता
कभी दूसरा पहले को पागल कहता
फिर पहला कहता, “बहुएकत अच्छे हो तुम”
फिर दूसरा ख़ुश हो जाता
फिर दोनों साथ चलने लगते
दोनों चलते-चलते बहुत दूर निकल गए
पहला ख़ुश था कि मन्ज़िल अब क़रीब है
बस थोड़ा सा ही रास्ता बचा है
दूसरा ख़ुश था कि पहला मेरे साथ होने से ख़ुश है
पहला ख़ुश था कि दूसरा मेरे साथ है
फिर अचानक दूसरा रुक गया
पहले ने कहा, “थोड़ी हिम्मत करो”
“बस थोड़ा ही रास्ता बचा है”
दूसरे ने कहा
“तुम चलो मैं तुम्हारे साथ ही हूँ”
पहला चलता रहा
फिर उसे अकेलापन महसूस होने लगा
उसने दूसरे को आवाज़ दी
“कहाँ हो तुम?”
“आ जाओ!”
“मैं अकेला हो गया हूँ यहाँ”
दूसरे ने दूर से ही चिल्ला कर कहा
“तुम्हारे साथ इस रास्ते पे
“अब मुझसे चलना नहीं होगा” ?
पहला हैरान हुआ
कि ये अचानक क्या हो गया
अभी तक तो सब ठीक था!
अब क्या हो गया?
दूसरे ने कहा, “मुझे तो यहाँ आना ही नहीं था”
पहला और हैरान हुआ
कि इसे क्या हुआ ?
ऐसा क्या हो गया?
कि उसे मेरा साथ होना
अब ठीक नहीं लगता?
पहले ने पूछा, “कहो तो सही, बात क्या है?”
दूसरे ने कहा, “इस रास्ते पे, तुम्हारे साथ चलने में ख़तरा है!”
“किसी को पता चलेगा, तो मुश्किल होगी, बदनामी होगी!”
“किसी को मुँह नहीं दिखाया जाएगा!”
पहला हैरान होता गया
अब परेशान भी होने लगा
कहा, “मन्ज़िल तक नहीं, कुछ दूर तो चलो”
“थोड़ी दूर साथ तो दो”
“तुम थे तो हौसला था”
“अब आगे अकेले कैसे
दूसरे ने ज़ोर दे कर कहा
“मुझसे अब आना नहीं होगा”
“तुम जाओ अब”
“हमारा तुम्हारा साथ यहीं तक था”
“तुम हमेशा याद रहोगे”
पहले ने कहा, “ऐसा न कहो”
“तुम्हारे ही दम पे
ये सफ़र शुरू किया था”
“इस तरह बीच में न छोड़ो
इस तरह मुझसे मुँह न मोड़ो”
दूसरे ने कहा, “तुम समझते क्यों नहीं?”
“मुझसे नहीं होगा अब”
पहले ने कहा, “ये कैसी बात है?”
“हम तो साथ ही चले थे”
“अब क्यों रुकना?”
“चले आओ, चले आओ!”
पहला फिर भी चलता रहा
रुका नहीं
सफ़र आसान था
रास्ता जाना-पहचाना था
पहला चलता रहा
चलते-चलते काफ़ी दूर निकल गया
अब तो दूसरा दिख भी नहीं रहा था
पहला परेशान होने लगा
रोने लगा
रोकर आवाज़ दी
“कहाँ हो तुम?”
“आते क्यों नहीं?”
“मैं अकेला हो गया हूँ!”
“रो रहा हूँ”
“तुमसे ये भी देखा नहीं जाता...!”
“चले आओ, चले आओ!”
दूसरा शान्त हो गया था
ये सोचकर
कि पहला थोड़ी देर शोर मचाएगा
फिर मेरी ही तरह
शान्त हो जाएगा
और वक़्त बीतने के साथ
सब ठीक हो जाएगा
मगर पहला चलते-चलते
बहुत दूर निकल गया
अब उसे दूसरे की कोई आवाज़ भी न आती थी
पहला बड़ा हैरान हुआ
बहुत परेशान हुआ
घबराने लगा
रोने लगा
ख़ूब रोया
वहाँ उसे चुप कराने वाला भी कोई न था
पहला इतना रोया
कि रोते-रोते थक गया
अपने ही हाथों से
अपने आँसू पोछ्ते हुए फिर रोने लगा
उसने दूसरे से फिर कहा, “सुनते हो?”
“मैं अब भी तुम्हारी राह देख रहा हूँ!”
“चले आओ, चले आओ!”
दूसरे को उसकी पुकार सुनाई दी
मगर दूसरे ने हिम्मत की
ख़ुद को रोकने में
पहला जितनी शिद्दत से पुकारता था
दूसरा उतनी ही मेहनत से
ख़ुद को रोकता था
पहला हैरान-परेशान
अजीब-अजीब हरकतें करने लगा
जैसे पागल हो गया हो
जैसे पागल हो जाएगा
उसने दूसरे को फिर पुकारा
लेकिन अब दूरी इतनी बढ़ चुकी थी
कि दूसरे को सुनाई भी न दिया
पहला अब भी पुकार रहा था
“आ जाओ, आ जाओ!”
पहला मन्ज़िल से थोड़ी दूर ही था
सोचता था
दूसरा ज़रा सा हौसला कर ले
तो सफ़र आसान हो जाए
मन्ज़िल मिल जाए
मगर दूसरा रुक गया था
पहला चल रहा था
चलता गया
पहला आवाज़ देता गया
दूसरा कभी सुनता
कभी सुनता भी न था
पहला पुकारता गया
मगर दूसरा
अब हिलता भी न था
दूर वादियों में
ये आवाज़
अब भी सुनाई देती है
“आ जाओ, आ जाओ!”
“चले आओ, चले आओ!”