दर्द
दर्द
आज मुझे दर्द का एहसाह हुआ
जैसे सूखे पेड़ को पानी का एहसास हुआ
चोट तो कल भी मुझे लगती थी मुझे
पर उस दर्द का एहसाह होता था
अब तो चोट को भी शर्म आ जाती है
ओर कह देती है बड़ा बेदर्द हो गया रे तू
ये बात सुन कर आज दर्द का
आज फिर मुझे दर्द का एहसाह हुआ
बहुत दिनों के बाद मुझे मेरे माँ का ख्याल आया
लौट जाने को जी चाहता हैं माँ
सारे दर्द सुनाने को जी चाहता हैं माँ
थक सा गया हूँ सफलताओं को कदमो में गिरते-गिरते
अब तेरे कदमो मे रहने को जी चाहता हैं माँ
आगे जाने के होड़ में खुद को भूल सा गया
क्या बताऊँ माँ, अब तो चोट भी लगती हैं
तो मुस्कुरा के दिखाना पढ़ता हैं
सच बोलू माँ, आज तेरे गोद में रोने को जी चाहता है
तेरे आँचल में सोने को जी चाहता हैं माँ
आज आँखे नम हो आयी
क्या बताऊँ माँ आज तेरी बहुत याद आयी
याद आते है बचपन के वो दिन
चोट लगे भी नही, तो तुझे दर्द का एहसाह दिलाता था
आलम कुछ ऐसा हैं आज माँ
कि चोट लगने पर भी दर्द का एहसाह न होता
आज मुझे दर्द का एहसाह हुआ
ए दर्द तेरा शुक्रिया
जो तेरी बात सुन पाया
मुझे मेरी माँ का ख्याल आया
लौट जाना चाहता हूँ, मैं उस बचपन में
नही चाहिए मुझे ये सफलताओं का शान-ओ-शौकत
इस बेदर्द समाज ने मुझे भी बेदर्द बना दिया
आज बिना दर्द के रोने को जी चाहता है
माँ तेरे पास लौट आने को जी चाहता है
बुला ले तू माँ अपने पास मुझे
देख लिया तेरे लाल ने ये संसार
सारे लोग दर्द पर हँसते हैं
एक तू ही तो है माँ
जिसे मेरे दर्द का एहसाह है
बहुत दिनों बाद, माँ का ख्याल आया
आज मुझे दर्द का एहसास हुआ