चाँद का प्रेम
चाँद का प्रेम
उसने की मोहब्बत चाँद से
बेइंतेहां
भूल गई वज़ूद अपना
देखती रही वो प्यार का सपना
नहीं मालूम उसे कहीं चाँद भी
किसी का हो सकता है !
जब चाँद आता पूरा
भरपूर तारों, अपनी पूरी रौशनी के साथ
ख़ुश हो जाती वो, मेरा चाँद पूरा आया
नहीं समझती वो चाँद तो अनगिनत तारों में
अपनी रौशनी के साथ जगमगा रहा है !
घटने लगता चाँद का रूप
शायद कुछ तारों के साथ
चाँद की अठखेलियाँ चलती
धीरे धीरे घटता चाँद देख
वो उदासी की परतों में छुपती जाती
दुनियाँ की नज़रों से छुप कर आँसू बहाती
फिर भी आस का दामन न छोड़ती
एक दिन तो चाँद आयेगा मेरे लिए भी?
आ जाती घनघोर अँधेरी रात
छूट जाता है उसके सब्र का बाँध
सो जाती है एक पुरसुकून नींद
हमेशा के लिए !
शायद ये अर्श के चाँद को
फ़र्श पर लाने का एक ग़लत सपना था
जो कभी पूरा नहीं होता !!