इश्क का धुआँ
इश्क का धुआँ
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एक धुआँ उठा
मेरे दिल में लगी
इश्क की आग से
मिल गया जाके तेरी
आधी जली सीगार के धुँए से।
और एक खुश्बू उठी
बहा ले गई हम दोनों को
बहकी सी कुछ मैं
कुछ बहकाया तुम्हें।
आदत ए जाम ने
पीते रहे तुम व्हिस्की
तुम्हारे लब से लगी
कुछ छू गयी मेरे लब को
ये केसी तिश्नगी दिलों की।
होश ना हवास है
कहने को है ये आदत बुरी
पर पीते ही तुम्हारा
बादल बन बेइन्तहाँ बरसना
है बेहद पसंद मुझे।
हल्के से नशेमन में
बहकना है बेहद पसंद मुझे।