आओ बचपन ख़ुद में ढूँढे
आओ बचपन ख़ुद में ढूँढे
आओ बचपन खुद में ढूंढे
सुबह की ठंडी हवा निराली
धूप खिली है मतवाली
नन्हें-नन्हें पांव से गिर कर
उठने के सपने बुन लें
आओ बचपन खुद में ढूंढे।
वो आंगनवाड़ी में जा-जा कर
क, ख, ग,घ,ङ्ग पढ़ना
ए, बी,सी,डी के चक्कर मे
सिस्टर जी की डांट भी सुनना
पट्टी पर खड़िया से लिख कर
थोड़ी यादें ताजा कर लें
आओ बचपन खुद में ढूंढे।
कभी शरारत कभी अडिगपन
कभी-कभी वो इठलाना
कभी-कभी झट पट जा कर
माँ की गोदी में छुप जाना
क़भी कभी पापा जी की भी
प्यार भरी दो डाँटे सुन लेना
आओ बचपन खुद में ढूंढे।
वो नाना के घर पैसे पाना
दौड़ के जाकर कम्पट लाना
भीतर में रक्खे डेहरी से
चुपके चुपके गुड़ खाना
उन खट्टी-मीठी यादों में
आओ फिर से आहें भर लें
आओ बचपन खुद में ढूंढे।
गुल्ली-डंडा और कबड्डी
लुक्का-छिपी खूब खेल खेलना
नानी के संग देर तक बैठ कर
राजा, रानी के किस्से सुनना
जीवन की आपाधापी में
आओ यूँ ही बचपन लिख दें
आओ बचपन खुद में ढूंढे।