तेरे इश्क़ का रंग
तेरे इश्क़ का रंग
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तेरे इश्क़ का रंग कुछ ऐसा चढ़ा,
की हर रंग अब फीका लगने लगा
ना लाल भाये ना केसरिया भाये,
अब तो तेरे हुस्न का रंग चढ़ने लगा।
रात - तारों में ज़िक्र तुम्हारा होता है,
कब तुम आओगी, बस इंतज़ार होता है
सुना है गली में हमारे इश्क की चर्चा होती है ,
ज़माने से कह दो, हर इश्क में ऐसा ही होता है।
ये कंगन, ये बाली, ये बिंदी, तुम पर बहुत खिलती है,
ज़रा पास भी आ जाओ, अब तो बाहें भरने को तरसती हैं
तेरे इश्क़ का नशा मुझे पागल बना दिया,
न जाने कब का, मुझे मयख़ाने बिठा दिया।
सोचता हूँ कि हर आशिक का क्या यही हाल होता है,
अब तो इश्क ने मुझे जाहिल और ज़ालिम बना दिया...!