तुम से तुम तक का सफ़र मेरा
तुम से तुम तक का सफ़र मेरा
मन में उछलते मेरे एकान्त के
सुविचारित स्पंदन
तुम से तुम तक विस्तरित
एक आभा प्रतिबिंबित करते हैं।
ह्रदय से उभरते पहुँचते हैं
रूह तक सीधे
अवलंबित रहे सदा तुम्हारे प्रति
मेरे हर भाव।
अन्य सोच को मात देते
कब्ज़ा रहता है
तुम्हारी यादों का
मेरे अंतरंगी मन में।
सतरंगी रंग भरते
मेरे मानसिक जहाँ को
जवाँ रखता है तुम्हारे प्रति
मेरे ह्रदय का मोह।
भोर की पहली किरण के संग
तुम आन बसते हो
जहन में मुस्कुराते
दिन रथ में घूमते हो।
मेरी हर क्रिया में विराजमान
अलसायी शाम में ठहर जाते हो
रुके हुए पल से कुछ तुम भी अलसाए
कॉफ़ी के एक घूँट के साथ ही
जाग जाते हो।
संचारित बहते लहू की तरह
रात के मध्य पहर
पलकों के ढलने की कगार पर
आख़िरी अहसास से महकते हो।
तुम से तुम तक का ये सफ़र
मेरी ज़िंदगी के रथ का पहिया है।।