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माते ! तू सचमुच ग्रेट हो

माते ! तू सचमुच ग्रेट हो

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बार - बार क्यूँ ना कहना पड़े ...

दिल कहे ,बस ... कहता रहे !

तुम ही तो भगवान का दूसरा रूप...

ममता कि छाया देनेवाली कल्पतरु !

माते ! तू सचमुच ग्रेट हो ...


तेरे ही कोख से जन्म लिया ...

तेरा ही पल्लु पकड़ के बड़े हुए !

तेरे सहारे चलना सीखा ...

ना कभी ख़ुद का मतलब देखा !

माते ! तू सचमुच ग्रेट हो ...


अगर तू ही नहीं होती तो ?

क्या होता पुरुष मतलबी जात का ?

हर सुख - दुःख में साथ तेरा...

तेरे सिवा कुछ ना हमारा होने वाला !

माते ! तू सचमुच ग्रेट हो ...


तू जलती रही दिये कि तरह...

हमे प्रकाशमान करने के लिये !

मगर हमने सिर्फ तुम्हारा इस्तेमाल किया...

तेरा प्यार हमारे कभी ना समझ आया !

माते ! तू सचमुच ग्रेट हो ..


तू तो चुपचाप निभाती रही कर्तव्य अपना...

कभी पिताजी, तो कभी हमारे लिये जलती रही !

अपने सब अरमान, इच्छा की आहुती देकर ...

घुट-घुटकर मरती रही अपनों के खातीर !

माते ! तू सचमुच ग्रेट हो ..


मगर हमने न तेरा प्यार समझा, न महत्ता तेरी ...

कुर्बानी का दूसरा नाम मां होता है अब जा के समझ में आया !

हम अच्छे बेटे बन सके ना पति, ना अच्छे दोस्त किसी के ...

ना हमे मां के अच्छे संस्कार काम आये, ना हम मां को समझ सके !

माते ! हो सके तो हमे माफ़ करो ...तू सचमुच ग्रेट हो ..


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