इंसानियत
इंसानियत
परदे के पीछे छिप कर रह जाएगी तू,
अगर अभी न उभर कर आई तो,
अगर अभी अपने अस्तित्व की पहचान न कराई तो,
लेकिन उभरूँ भी तो कैसे।
दूसरों की खुशी के लिए अपना उभरना भूल गई मैं,
रिश्तों और खुद के चुनाव में
रिश्तों का चुनाव बेहतर समझा मैंने।
दूसरों की खुशी के लिए
खुद का बलिदान दे दिया मैंने,
लेकिन इस बलिदान के बाद भी
मुझे वो ना मिल पाया जो मैंने चाहा,
जिस रिश्ते के लिए जान भी हथेली पर रख दी,
वो भी दूर हो गया मुझसे,
अपनी ईमानदारी का ये नतीज़ा क्यों मिला मुझे,
क्या गलती की है मैंने,
किसी दूसरे पर खुद से ज्यादा विश्वास करने की,
खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचने की,
दूसरों के लिए खुद को भूल जाने की,
ये गलतियाँ नहीं प्रेम है दूसरों के प्रति,
जिसने मुझे ये सब करने के लिए मज़बूर कर दिया,
मेरे हिसाब से तो इंसानियत यही है
बस फर्क इतना है कि
इसे देखने के लिए लोग नहीं है।