कोमल पत्थर
कोमल पत्थर
क्या देखा है नदी किनारे
अनुपम सुषमा बिखेरते
उन गोल- गोल चिकने पत्थरों को,
क्या रह सके थे
आकर्षित हुए बिना उनकी और ?
उनमें से कुछ पत्थर उठा कर
घर ले आयें होंगे
जिन्हें पेपर वेट बनाया होगा
तथा कुछ और उमदा पत्थरों को
लिविंग रूम में सजाया होगा।
क्या सोचा है कभी कि
कहाँ से शुरू की
इस छोटे पत्थर ने अपनी यात्रा
और कैसे एकत्रित हुई
नदी किनारे इसकी इतनी मात्रा।
तो चला होगा पहाड़ की चोटी से
एक बड़ा नुकीला पत्थर
गिरता, फिसलता, टूटता, बिखरता,
मार्ग में दूसरी चट्टानों से टकराकर
नहीं तय कर पा रहा होगा
निर्विघ्न अपना सफ़र।
थोड़ा रूक कर जाना होगा उसने
कि नहीं है इन पैनी नौक वाले
धारदार किनारों के साथ अपना निर्वाह,
बहना होगा उसी गति से
जिससे बहता है नदी का प्रवाह।
यही सोच झड़ा दिए होंगे
सारे नकीले अस्त्र,
चल दिया होगा
कूदता-फाँदता होकर निशस्त्र।
तो मित्रों क्या हम भी नहीं हैं
उस पैनी नोक वाले धारदार पत्थर जैसे,
अपनी तीखी ज़बान
व संकीर्ण विचारों को अपनी ढाल सोचते।
जान लेगा होगा हमें
उस पत्थर से
कि जब तक नहीं हो जाते
हम जीवन प्रवाह में समरूप समाकार,
वीभत्स होता रहेगा
टूटता-फूटता हमारा आकार,
और जब हम भी गोल पत्थर जैसे,
निर्विकार हो जाएँगे,
सुंदरता फूटेगी हमारी
ना टकराकर कभी टूट पाएँगे।
ये महान संदेश हमें
अहिंसा का बताता पत्थर,
कठोरता का प्रतीक होकर भी
कोमलता सीखाता पत्थर।।