शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी
शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी
वो भी जल्दी में थी, मैं भी जल्दी में था,
क्योंकि कॅालेज में दाखिले का आखरी दिन था।
गलती से वो मुझसे टकराई,
फिर गिरने लगी, मैने उसे सम्भाला,
थोड़ी घबराई, फिर नज़रे मिलाई, थोड़ी मुस्कुराई, थोड़ी शर्मायी,
फॅार्म उठाया और चलने लगी,
आगे गयी फिर मुड़ी, नज़रे मिलाई,
मुस्कुराई, और चली गयी ।
मेरे चेहरे पर अभी भी मुस्कुराहट थी,
शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी ।।
एक दिन फिर मुलाकात हुई, उस दिन बारिश भी ज़ोर से हुई,
दूर से नज़रे मिली, उनकी ज़ुल्फें थी गीली,
इस बार पहले हम मुस्करायें, फिर वो मुस्कुरायें,
थोड़े कदम उन्होनें बढ़ाए, थोड़े कदम हमने बढ़ाए
अब सामने था उनका मुखड़ा, लग रहा था चाँद का टुकड़ा।
हम होले से बोले, उन्होनें भी होंठ खोले!!
अब हम उनका नाम पूछ बैठे,
“आपका ख्वाब” कहा और वहीं सवाल वो दोहरा बैठे,
हमने “अधुरा ख्वाब” कहा!!
अब कानों में मेरे, उनके कदमों की आहट थी।
शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी।
खुदा भी अब हमें मिलाए, कॅालेज वाले भी क्लासेज़ लगाए,
हर रोज़ हम क्लासो में जाए, एक दुजे के करीब आए,
टीचर अपनी कलम चलाता है,
ये दिल ख्वाबों मे गुम हो जाता हैं,
फिर होले से एक हाथ आता है,
सिर पर घुमता और दिल को जगाता है,
हाथ का एहसास उनका था पर अफसोस हाथ पड़ोसी का था।
यूँही हम रोज़ नज़रें मिलाए, मुस्कुराएं, और वो शर्माएं,
अब कॅालेज के बाद भी होती हमारी मुलाकात थी,
शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी।
यूँही मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा,
वक़्त अपनी रफ्तार से चलता रहा,
बातें आगे बढ़ने लगी, राते भी अब जगने लगी,
हिम्मत करके अब हमने मांगे नम्बर,
निहारने लगे वो नीला अम्बर,
खेर मना भी कैसे वो करते,
वो भी तो चुप्पी वाला प्यार करते,
अब कहा हम रुकते, मैसेज करने से वो भी तो ना चुकते,
लबों पर मेरे प्यार के गीतो की गुनगुनाहट थी।
शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी।
जनाब अब अगर ना हो मुलाकात,
तो कटती कहां हमारी रात।
मुलाकातो में भी अब कुछ अजीब होता,
दिल मेरा उनके बहुत करीब होता।
पता नहीं था बनेगा ये जन्मों-जन्म का साथ,
कभी कंधो पर मेरे उनका सिर, तो कभी मेरे बालों में उनका हाथ ।
मैं क्या करता, उन्हें सब कुछ ध्यान था,
उन्हें मेरा हर पल पूरा ख्याल था।
अटूट हम दोनों मे चाहत थी ।
शायद यहीं मोहब्बत की शुरुआत थी।