भोर की किरणें
भोर की किरणें
भोर की किरणें और उजाला निशा के चुंगल से जैसे बंद खिड़की के शीशे से होकर मुझ तक आ रही हैं क्या वैसे ही मेरे विचारों की ऊष्मा और गहनता तुम्हारे मन तक पहुँच पाएगी मेरा रोम-रोम जिस तरह जी उठा है किरणों के आगमन से क्या तुम्हारा मन भी अकुरिंत होता है मेरे इन भावुक शब्दों से जैसे ये किरणें मेरे अंतर्मन को सहलाती हैं क्या मेरे विचारों का दिवाकर तुम्हारे कोमल ह्रदय को बहलाता ? यदि हाँ, तो आज अभी मन की खिड़की खोलो इन शाब्दिक किरणों से ओत-प्रोत होकर आगमन करो नव प्रभात ! नव लालिमा नये दिन का...