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तलाश

तलाश

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ले चल मुझे मेरे माही 

कोई ऐसे शहर 

कोई ऐसी डगर 

जहां अखबार की स्याही ना हो लाल 

कोई ऐसा बसेरा जहां हर सवेरे 

ना हों आँखें नम किसी मासूम के ग़म से 

ले चल मुझे ऐसे किसी गाँव 

जहां किसी अबला की लुटी इज़्ज़त 

बनकर शर्म और बेबसी की चादर 

ना ढके नपुंसकों की कायरता 

है कोई ऐसी सड़क इस जाहाँ में 

जहां चल सकूँ बेझिजक 

बिना कुचले लाचारों के बिखरते अरमान

कोई ऐसा मोड़ जहां आँसुओं के तालाब में

ना हो डूबती किसी बच्चे की मुस्कान

कोई ऐसा चौबारा कोई ऐसा खेत 

जहां हरे भरे पेड़ो पर 

उगे केवल फूल पत्ते 

ना कि नंगी लाशें लहू लुहान 

ले चल माही मुझे किसी ऐसे देश 

जहां सवेरे का सूरज शाम ढले 

और कहीं से कोई चीख 

कोई दर्द भरी गुहार ना आये 

हैवानियत के दरिंदे जहां हाहाकार न मचाएँ 

जहां हर जाती हर धर्म के ठेकेदार 

केवल इंसान बनकर रह जाएँ 

 

 


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