ग़ज़ल 5
ग़ज़ल 5
टूट गई है लय जीवन का सुर ग़ायब है ताल नहीं है,
क्या कुछ हमसे छूट गया है इसका हमें ख़याल नहीं है।
अपने ही जब ग़ैर हुए तो वो वृद्धाश्रम चले गए,
ख़ुश है बेटा, बहू के सर पर अब कोई जंजाल नहीं है।
दिनभर खटा धूप में लेकिन कुछ भी हाथ नहीं आया,
क्या खाएंगे बच्चे आख़िर घर में आटा दाल नहीं है।
क्या-क्या नहीं दिया बचपन को इंटरनेट की दुनिया ने,
बच्चों के अफ़सानों में क्यूँ वो बूढ़ा बेताल नहीं है।
दौलत वालो! देखो आकर क्या हैं ठाट फ़क़ीरों के,
जहाँ भी रहते ख़ुश रहते हैं भले जेब में माल नहीं है।
ख़्वाब को मंज़िल तक पहुँचाना बेहद मुश्किल है लेकिन,
कभी-कभी महसूस हुआ है इसमें कोई कमाल नहीं है।
अच्छा दिखने की ख़्वाहिश तो हर इंसां में होती है,
फिर भी जो बदनाम है उसको इसका कोई मलाल नहीं है।