आत्मीयता
आत्मीयता
दिल्ली भोपाल लखनऊ पटना धनबाद से बुलाते हैं दोस्त
फोन पर बार-बार
अरे यार आओ तो कभी एक बार
जमेगी महफ़िल रात भर
सुबह तान कर सोऐंगे
शाम घूमेंगे शहर तुम्हारे साथ
सिगरेट के छल्ले बनाऐंगे
आओ तो यार आओ तो यार
बार-बार का इसरार
बार-बार लुभाता है
दफ्तर घर पड़ोस अपने शहर अपने परिवार को झटक कर
बड़े गुमान से सुनाता हूँ
टिकट कटाता हूँ
दोस्तों के शहर में पहुँचकर फोन मिलाता हूँ
दोस्त व्यस्त है
ज़रूरी आ गया है काम
कहता है होटल में रुको या घर आ जाओ
खाओ पीओ मौज़ मनाओ
मुझे तो निपटाने हैं काम अर्जेंट बहुत
अगली बार आओ तो धूम मचाते हैं
सारी कोर-कसर निभाते हैं
लौटकर वापस फेसबुक पर लिखता हूँ शिकायत
कुछ दोस्त उसे लाइक कर देते हैं
कुछ स्माइली बना देते हैं
कुछ देते हैं प्रतिक्रिया- हाहाहा...