आँख मिचौली का गेम
आँख मिचौली का गेम
चल फिर से हम बचपन वाला,
वही आंख मिचोली का गेम खेलते हैं।
तू नकचढ़ी और मैं चिड़चिड़ा होकर,
दोनों एक दूसरे को फिर से झेलते है।
तू आंखों पर पट्टी बांधे मुझे ढूँढती रह,
और मैं कहीं आस पास ही खो जाऊं।
तू मेरे हर गलतियों को अनदेखा कर दे,
और फिर से मैं तेरा ही हो जाऊं।
मेरे प्यार की पट्टी हो तेरे आँखों पर,
तेरे बंद पलकों को मेरा इंतजार हो।
मुझे ना पाने की बेचैनी हो चेहरे पर,
तेरी पायलों में फिर से वही झंकार हो।
फिर से तेरी बाहों को खोल उसी तरह,
और मैं उन में कैद हो जाऊं।
क्यों बड़े हो गए बिन मतलब के,
हमारा वो मासूम सा बचपन खो गया।
समझदारी और उम्र के चक्कर में,
दोस्ती और प्यार में समझौता हो गया।
तू फिर से मासूम सी लड़की बन जा,
और मैं वो शरारती लड़का बन जाऊँ।
मेरे विश्वास की पट्टी बाँध आँखों पर,
और मैं तेरी बेचैन बाहों में खो जाऊँ।