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दिनभर-रातभर

दिनभर-रातभर

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दिनभर..

अरमानों को निचोड़े

तन उघाड़े

बुनते रहते हैं

गाली और आँसुओं

की चादर


रातभर..

अधमुंदी पलकों से करते

ख़ुशनसीबी का एहसास

और ख्वाहिशों के पंख

उड़ाते रहते है

चुनिन्दा ख्वाबों के बादल।


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