पिता और व्हील चेयर
पिता और व्हील चेयर
पिता व्हील चेयर पर बैठे थे
एकदम इत्मीनान के साथ
उनके अलावा सबको पता था
वह हो सकते हैं वहां से
किसी पल भी लापता
मौत यहीं कहीं है आसपास।
वह बार बार कर रहे थे
बर्मा ले चलने की जिद
बड़ी आत्मीयता से जिक्र करते
लाहौर की पेचीदा गलियों का
द्वितीय विश्व युद्ध के किस्से
अनवरत दोहराते।
वह आश्वस्त थे
हमेशा की तरह
एक बार यहाँ से चले भी गये
लौट आयेंगे आस्तीन से पसीना पोंछते
उनको कभी नहीं रही
कही आने-जाने की जल्दी।
वह आँखें मूंदे थे
मां हताशा में ले रही थी
लम्बी सांसें
खंगाल रही थी शायद
आखिरी बार या पहली बार अनमनी–सी
उनसे रूठ जाने की पुख्ता वजह।
उन्होंने पूछा था
तब हम सबसे या
कमरे की नम हवा से
यार, वह स्टीफन हाकिंग की
खुद-ब-खुद चलने वाली व्हील चेयर
क्या अब मिलने लगी है बुद्ध बाज़ार में।
वह बिना हिले डुले बैठे थे
बैठे ही रहे देर तक
हम लोगों को मालूम नहीं था
उनके सवाल का जवाब
तभी वह चले गये चुपचाप
व्हील चेयर वहीं छोड़ कर।