मेरी बेटी
मेरी बेटी
हॉस्पिटल की खामोशी तोड़,
एक नाज़ुक सी,
रोने की आवाज़ आई।
कहने लगे सब एक दूसरे से,
मुबारक हो लक्ष्मी है आई।
कुछ एहसास था अनसुना ,
दिल , दिमाग़ में ठंड सरसराई।
उस दर्दनुमा माहौल में भी,
मीठी मुस्कान लबों पर आई।
ऐसा लगता था सभी फरिश्ते
आ रहे देने बधाई।
फिर उसका छोटा सा सिर,
मेरे बाज़ू पर रखना,
हमारे साथ का आग़ाज़ था।
कपड़ों में लिपटा,छोटा सा जीवन,
मेरे लिए कितना खास था।
डबडबाई आंखों से
उसका मुझे देखना,
खुशनुमा एहसास था।
मैंने उसके सिर को सहलाया,
अपनी उंगली उसे पकड़ाई।
मातृत्व की परिभाषा ,
आज समझ थी आई।
नींद के आग़ोश में आकर
वो धीरे से मुस्काई।
ऐसा लगता था, सभी फ़रिश्ते
आ रहे देने बधाई।