मुक्त करो भगवन को आज !
मुक्त करो भगवन को आज !
सदियों से मंदिर की चौखटों में,
मनुष्य बचाता रहा है ईश्वर की लाज,
पर दम घोंट कर मारने से बेहतर;
मुक्त करो भगवन को आज !
बेलपत्र, दूध, गंगा जल, चन्दन, धूप,
हरेक से शुद्ध कराया ईश्वर को,
पर आडम्बर की दलदल में
फँसता गया समाज,
सो मुक्त करो भगवन को आज !
जो शीश बदल जाए हर साल,
उसी पर चढ़े सोने-चांदी का मुकुट और ताज,
पाखंडी और पंडितों की सामंतवादी गुलामी से,
मुक्त करो भगवन को आज !
न दबाओ घंटियों में उसकी हुँकार,
कभी तो सुनो बेजान मूर्तियों की पुकार,
मानवता के प्राण बचाने को,
मुक्त करो भगवन को आज !