कइयों की कहानी
कइयों की कहानी
ये कहानी मेरी नहीं है,
कइयों की कहानी है ये,
पर बिल्कुल एक जैसी है।
इन कहानियों में कोई
पितृसत्ता नहीं है,
समाज के सारे बंधन
तोड़े जा चुके होते हैं।
कहानी शुरू होती है,
एक राजकुमारी और
एक राजकुमार से।
दोनों में होता है
बेइंतहा प्रेम,
दोनों साथ जीने-मरने की
कसमें खा चुके होते हैं,
ज़िंदगी में रंग भरे होते हैं।
रोज रोज पूरा चाँद
निकल रहा होता है,
शीतल और सुगन्धित
हवा बह रही होती है।
सारा मौसम बसंत होता है,
फिर समय के साथ
कुछ चीज़ें बदलती हैं,
वो दोनों प्रेम को
बरकार रखने की
कोशिश करते हैं।
मगर फिर कहानी में
एक नया मोड़ आता है,
एक नया लड़का,
राजकुमारी को लगता है।
ये तो उसके लिए राजकुमार से
ज्यादा सही है,
मुझे इसके साथ
आगे बढ़ना चाहिए।
वो कई सालों के
प्रेम को भुला देती है,
सारे वादे तोड़ देती है,
और तो और
उससे सीमायें तोड़ कर,
उससे प्यार करने वाले
राजकुमार से भी नफ़रत है,
उसके जीवन का
सबसे जरुरी शख्स ,
एकदम से गैर जरुरी
बन जाता है,
जैसा इस राजकुमार
के साथ हुआ,
वैसी हूबहू कहानियाँ
कई राजकुमारियों की है,
पर इन कहानियों का अंत
एकदम एक सा है,
राजकुमार और राजकुमार के
बीच का अथाह प्रेम,
जिससे खुद सूरज रोशनी लेता था,
वो खत्म हो जाता है,
जो इस कहानी में
छूटने वाला शख्स होता है,
उसके बसंत की जगह
पतझड़ ले लेता है,
कहानी के नए किरदार
वो लड़का या लड़की,
कुछ समय बाद
कहानी से गायब हो जाते हैं।
बचते है केवल
राजकुमार और राजकुमारी
जिनके मिलने का
कोई सयोंग नहीं है।
न ही वैसा प्रेम और
नहीं ज़िंदगी में उतनी ख़ुशी,
मैंने देखा है, थोड़ा सा लालच,
थोड़े से स्वार्थ के लिए,
कई राजकुमार
और राजकुमारियों ने
ना ही खुद के जीवन को बल्कि,
प्रेम जैसे प्यारे बंधन को
तार-तार किया है।।